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कविता

सपने

श्रीप्रकाश शुक्ल


 

न न न
न छूना इन्हें
इन्हें केवल देखो

ये खिलौने नहीं हैं
ये सपने हैं
अभी कच्चे हैं
छूते ही ये भहरा जाएँगे।
   ('रेत में आकृतियाँ' संग्रह से)


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